Friday, April 15, 2011

Humnawaa...

"वो हमसफ़र था मगर उस से हमनवाई न थी 
की धूप छाँव का आलम रहा , जुदाई न थी

न अपना रंज न औरों का दुःख न तेरा मलाल
शब-ए-फ़िराक कभी हमने यूँ गँवाई न थी

मुहब्बतों का सफ़र इस तरह भी गुज़रा था 
शिकस्ता-दिल थे मुसाफिर , शिकस्त पायी न थी

किसे पुकार रहा था वो डूबते हुए दिन
सदा तो आई थी लेकिन कोई दुहाई न थी 

अदावतें थीं , तगाफ़ुल था, रंजिशें थी मगर
बिछड़ने वाले में सब कुछ था , बेवफाई न थी

बिछड़ते वक़्त उन आँखों में थी हमारी ग़ज़ल 
ग़ज़ल भी वो जो किसी को अभी सुनाई न थी

कभी ये हाल की दोनों में यकदिली थी बहुत
कभी ये मरहला जैसे की आशनाई न थी

अजीब होती है ये राह-ए-सुखन भी देख नसीर
वहाँ भी आ गए आखिर जहां रसाई न थी " 




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